लेखनी कहानी - बेबस औरत
बेबस औरत
फिर एक बार आज उसे अपनी औकात की याद दिलाई गई। रोटियां ज़रा कम पकी थीं। बस इसी बात को लेकर फिर उसके जख्मों को कुरेद दिया गया।
दबी सहमी सी वो, फिर एक बार सहलाती रह गई, अपने गाल पर छपे उंगलियों के निशान।
कोई नही है, उन जख्मों पर मरहम लगाने वाला। ना कल था, और ना ही कल कोई होगा।
तिल तिल मरती जाएगी वो, जब जब भी करेगी अपने जख्मों को याद।
कुसूर सिर्फ इतना था, वो परम्पराओं से जुड़ी हुई, एक बेबस औरत थी।
प्रियंका वर्मा
27/9/22
Khushbu
05-Oct-2022 03:15 PM
Nice
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